पुण्य का अकाउंट

पुण्य का अकाउंट March 4, 2020Leave a comment

यह कहानी उस समय की है जब मैं कॉलेज मैं था। मैं मेरे परिवार के साथ बद्रीनाथ की यात्रा पर गया। मुझे याद है उस वक्त हमारी यात्रा ऋषिकेश से प्रारंभ हुई, उस समय वहां जाने के लिए पैकेज्ड यात्रा बुक करानी होती थी इसलिए हमने भी एक बस से किसी ट्रेवल एजेंसी के माध्यम से अपनी यात्रा को बुक करा लिया और हम बद्रीनाथ की यात्रा पर निकल गए। उस समय बद्रीनाथ पहुंचने के लिए 1 दिन और एक रात की यात्रा करनी होती थी। तो हम यात्रा करके बद्रीनाथ पहुंचे, हमने वहां पर बद्रीविशाल के दर्शन किए वहां पर एक गर्म जल और ठंडे जल का कुंड है, उसमें स्नान भी किया और रात्रि में विश्राम किया। बहुत ज्यादा ठंड थी उस रात जैसे तैसे वो रात गुजरी और दूसरे दिन सुबह हम वापस ऋषिकेश के लिए प्रस्थान करने के लिए अपनी बस के पास आकर इकट्ठा होना शुरू हो गए। जब सभी यात्री बस में आ गए और बस रवाना होने वाली थी तभी मेरी नजर एक बुजुर्ग दंपत्ति पर पड़ी जो वहां बहुत देर से सभी बस वालों से बस के ड्राइवर और कंडक्टर से विनय कर रहे थे कि हमको भी साथ ले चलो क्योंकि उनकी बस ने उनको वहां पर छोड़ दिया था। जो भी कारण रहे होंगे पर उनकी बस उन्हें छोड़ कर चली गई अब क्योंकि सभी बस अपने निश्चित यात्रियों को लेकर आई थी तो उतने ही यात्रियों को लेकर भी जाएगी क्योंकि यात्रा दुर्गम थी। यात्रा एक दिन व एक रात की थी तो कोई भी उनको अपनी बस में ले जाने के लिए तैयार नहीं था।
जब मैंने उनको देखा तो मेरे मन में यह विचार आया कि मुझे इनकी मदद करनी चाहिए। मैंने अपनी बस के ड्राइवर और कंडक्टर से बात की और उनको समझाने की कोशिश की कि इन बुजुर्गों को यहां कितनी परेशानी होगी क्यों ना हम इनको अपने साथ ऋषिकेश ले चलें तो ड्राइवर और कुछ यात्रियों का यह कहना था कि इतनी लंबी यात्रा यह कैसे करेंगे सब को परेशानी होगी। तब मैंने उनको यह कहा कि अगर आप लोग यह समझ रहे हैं कि आपको इनको सीट देनी पड़ेगी तो मैं आप लोगों को यह वादा करता हूं कि अगर सीट देनी होगी तो मैं अपनी सीट दूंगा अन्यथा जो भी साधन बैठने के लिए हम इनको दे सकेंगे उस पर मैं और मेरा परिवार बारी बारी से बैठकर इनको सीट पर बिठा कर ले चलेंगे। मेरे इस विचार से कुछ दयालु यात्रियों ने मेरा साथ दिया और सभी ने ड्राइवर और कंडक्टर को समझा दिया। हम उन बुजुर्ग दंपति को अपने साथ बिठा कर बद्रीनाथ से ऋषिकेश के लिए रवाना हो गए बस के कंडक्टर ने डिक्की में से एक सीट (मुड्ढा) निकाल करके हमको दे दी मैंने अपनी सीट उन बुजुर्ग महिला को दी और उस सीट (मुड्ढा) पर उन बुजुर्ग को बिठा दिया और खुद खड़ा होकर यात्रा करने लगा मैं थक कर बस की सीढ़ियों में बैठ गया तभी मैंने देखा कि उन बुजुर्ग महिला ने अपनी सीट अपने पति को दी और कहा आप थक गए होंगे इस पर थोड़ी देर बैठ कर आराम कर लीजिए उन बुजुर्ग दंपत्ति का प्रेम देखकर बहुत अच्छा लगा।
मुझे नीचे बैठे देखकर मेरे सहयात्री यों को मन में यह विचार आया कि हम सभी अगर एक-एक घंटा भी अपनी सीट इन बुजुर्ग दंपत्ति को देंगे तो सहर्ष यात्रा पूरी हो जाएगी इस विचार पर सभी ने अपनी सीट को साझा करना शुरू कर दिया। सभी ने मन में बड़े आनंद को महसूस किया तभी हमारी बस के साथ एक दुर्घटना घटने के लिए तैयार थी हम एक ऐसी जगह पर आकर खड़े हो गए जहां पर सामने वाली बस के जिद्दी ड्राइवर ने हमारी बस को उस जगह पर खड़ा कर दिया जहां से वह खाई में गिर सकती थी। बड़ी ही सावधानी से धीरे धीरे बस को निकालने की कोशिश की गई एक तरफ के यात्रियों को जब खाई दिखना शुरू हुई तो उन्होंने जोर जोर से भजन कीर्तन करना शुरू कर दिया कि “हे ईश्वर हमारी मदद कर” आखिर ईश्वर ने हमारी मदद की और ड्राइवर और कंडक्टर की सूझबूझ से हम उस परेशानी से बाहर आ गए। पर कहीं ना कहीं सब ने यह महसूस किया कि यह चमत्कार इन बुजुर्ग दंपत्ति की वजह से हुआ है। ईश्वर ने हम पर उपकार किया है। इसी आनंद के साथ वह यात्रा जब ऋषिकेश में समाप्त होने वाली थी तो एक युवा दंपति ने मुझसे पूछा “राधे तुम्हारे मन में इन बुजुर्ग दंपति के लिए यह भाव क्यों आया कि हम सबको इनकी मदद करनी चाहिए” मैंने बिना सोचे बिना समझे उनको एक जवाब दिया कि “मैं चाहता हूं इस तरह की किसी भी मुसीबत में अगर मेरे मां बाप हों तो वहां पर मेरा जैसा एक युवक उनकी मदद के लिए जरूर हो” इसीलिए मैंने इनकी मदद की।

अब यह कहानी का एक भाग है कहानी का दूसरा भाग यहां से शुरू होता है। मेरी माता जी कैंसर से पीड़ित थी और उनको हर छह माह में टाटा मेमोरियल कैंसर सेंटर में मुंबई दिखाने ले जाना होता था। तब अजमेर से मुंबई के लिए डायरेक्ट ट्रेन नहीं थी या तो अहमदाबाद होकर जाना होता था या रतलाम होकर और ट्रेन भी बदलनी पड़ती थी मेरी और मेरी माता जी का इसी वजह से मुंबई जाने का कार्यक्रम बना मैं उन्हें लेकर मुंबई जाते वक्त रतलाम में उतरा तो मैंने देखा कि हमारी मुंबई जाने वाली ट्रेन जाने के लिए तैयार खड़ी है 3 प्लेटफार्म दूर होने की वजह से मैंने अपनी माता जी का हाथ पकड़कर उनको बहुत तेजी से चलाया। मेरी माता जी हार्ट पेशेंट भी थी तो तेज चलने में असमर्थ थी परंतु हमारा दूसरे दिन का अपॉइंटमेंट था इसलिए मैं उनको तेजी से हाथ पकड़कर चलाने लगा जैसे ट्रेन आगे बढ़ने को हुई वैसे ही मैंने उनको ट्रेन के डिब्बे में बिठाया और तेजी से अपना सारा सामान डालने लगा सामान डालते डालते ट्रेन रवाना होने लगी और ट्रेन रवाना हो गई। मैंने राहत की सांस ली परंतु मैंने देखा मेरी माता जी की सांस बहुत तेज चल रही थी। उन्हें बहुत तेज घबराहट हो रही थी। उन्हें सीने में दर्द भी हो रहा था उनको देखकर मुझे ऐसा लगा कि यह ज्यादा तेज चलाने का परिणाम है कि उनको एंजाइना पेन होने लगा है। मुझे लगा कि मुझे ट्रेन को रोकना चाहिए और मदद के लिए लोगों को बोलना चाहिए।
मैं जैसे तैसे उनको उनकी सीट पर ले गया वहां लेटा कर उनके हाथ और पैरों पर मालिश करने लगा यहां पर मैं यह भी बता दूं की हम सेकंड एसी में यात्रा कर रहे थे और सभी यात्री गण पर्दा लगा कर आराम से सो रहे थे क्योंकि रात्रि के 2:00 बज रहे थे। इस वक्त सभी यात्री सो चुके होते हैं पर्दों के पीछे महिला है या पुरुष इसका पता लगना भी मुश्किल है मुझे लगा अगर मैं किसी का पर्दा हटाता हूं और अगर वह महिला हुई तो वह बुरा मान सकती है तभी मैं देखता हूं की एक सहयात्री पर्दा हटाते हैं और मुझसे पूछते हैं क्या हुआ मैंने उनको कहा “मेरी माता जी को शायद एंजाइना पेन हो रहा है” उन्होंने उसी वक्त लाइफ सेविंग ड्रग्स अपने पास से निकाला और मुझे दिया यही दवाई इमरजेंसी पर हम अपनी माताजी को कई बार दिया करते थे मैंने वह दवा उनसे लेकर अपनी माता जी की जीभ के नीचे रखी। थोड़ी ही देर में माताजी सामान्य होने लगी थोड़ा पानी पिया और फिर आराम से सो गई मैंने उन सज्जन का दिल की गहराइयों से अनंत बार धन्यवाद दिया और ईश्वर को भी धन्यवाद दिया कि उन्होंने उसी सहयात्री को नींद से जगाया जिसके पास वह दवाई थी मुझे बद्रीनाथ की यात्रा याद आ गई वह बुजुर्ग दम्पति की याद आ गई शायद यह मेरी उसी पुण्याई का प्रतिफल ईश्वर ने मुझे दिया और मेरी माता जी की जान बच सकी।

इस घटना को मैं जब भी याद करता हूं मेरी आंखों में आंसू आ जाते हैं। लेकिन यह बात भी याद आती है कि किसी की, की गई मदद किसी और के लिए नहीं होती बल्कि वह आप स्वयं के लिए होती है। जब हम किसी की मदद करते हैं तो कहीं ना कहीं कोई स्वयं की मदद कर रहे होते हैं। इसीलिए शायद कहा जाता है कि जो भी आप अच्छे कर्म करेंगे वह कहीं ना कहीं आपके आगे काम आएंगे। यह सीख मेरे माता-पिता ने मुझे दी इस बात के लिए मैं उनका कृतज्ञ हूं और यहां पर इसलिए साझा कर रहा हूं की हमसे जब भी जैसे भी किसी की मदद करने के लिए मौका मिले तू जरूर करना।

धन्यवाद

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