उदाहरण के लिए प्याज लहसुन टमाटर आम गाजर अदरक आदि ऐसी चीजें जो की सॉस बनाने में काम आती है उन्हें डिहाइड्रेट कर बाद में बेचा जा सकता है इस तरह की डिहाइड्रेट करने वाले प्लांट की सुविधाएं ट्रकों पर लगा कर एक खेत से दूसरे खेत ले जाकर किसानों को सुविधा दी जा सकती है। जिससे अधिक उत्पादन होने पर उनको नुकसान होने का डर नहीं रहेगा। ऐसा कई विकसित देश कर रहे हैं जिससे कि वह पैदावार को बचाने में सफल हो जाते हैं साथ ही
इससे ट्रांसपोर्टेशन की लागत भी कम हो जाती है तो सभी तरह से किसान को इसमें लाभ होगा हालांकि इस तरह की कुछ कोशिश अलग-अलग राज्यों में हो रही है परंतु अभी इसको व्यहारिक तरीके से उपयोग में लाना होगा।
भारत की बड़ी जनसंख्या गांव में निवास करती है गांवों में रोजगार बढ़ाने के लिए भारत के ग्राम पंचायतों की संख्या अनुसार एक फ़ूड प्रोसेसिंग की लघु इकाई पंचायत स्तर पर लगाई जा सकती है। आज जबकि एक डिस्ट्रिक्ट से दूसरे डिस्ट्रिक्ट, एक राज्य से दूसरे राज्य में आवागमन रोक दिया गया है तो इस स्थिति में यह ना केवल गांव में रोजगार पैदा करेगा बल्कि ऐसी ऐसी स्थिति पैदा होने पर स्थिति को बहुत अच्छे से हैंडल की जा सकती है इसमें ग्राम पंचायत लेवल पर एक लघु इकाई जिसमे फुली ऑटोमेटेड डिजिटल फूड फैक्ट्री लगाई जाए जिसमें उत्पादन करते हुए फ़ूड आइटम के उत्पादन पर मानव हाथ ना लगे
और ऑटोमेटिक पैकिंग द्वारा माल पैक होकर उस गांव में या राशन की दुकानों में या ओपन मार्केट में काम में लिया जा सके इससे उस गांव में पैदा होने वाली फसल या जिंसों का उपयोग उसी गांव में हो जाएगा और अनावश्यक रूप से लॉजिस्टिक या ट्रांसपोर्टेशन पर खर्चा नहीं होगा साथ ही गांव के युवक गांव में ही रोजगार पा सकेंगे क्योंकि यह फैक्ट्रियां पूरी तरह से डिजिटल और ऑटोमेटिक होंगी तो सरकार उनसे आवश्यक डाटा का इनपुट लेकर इफेक्टिव कंट्रोल भी कर पाएंगी।
यहां पर यह भी ध्यान देने योग्य है कि यह फैक्ट्रियां साइज में छोटी भी होंगी या इनको 20 फीट या 40 फीट वाले ट्रक ट्रेलर पर भी लगा सकते हैं जिससे कि यह एक ग्राम पंचायत से दूसरे ग्राम पंचायत में भी जा सके इस तरह की मोबाइल फूड फैक्ट्री को रोजगार का साधन बना सकते हैं साथ ही आवश्यक खाद्य जैसे कि आटा दाल चावल तेल नमक मसाले और छोटी मोटी घरों में काम आने वाली वस्तुओं के उत्पादन के लायक बनाया जा सकता है। इससे शहरों में जनसंख्या दवाब कम होगा। प्रवासी मजदूरों को गांव में काम मिलेगा।
भारत की पब्लिक डिस्ट्रीब्यूशन सप्लाई जिसमे BPL या खाद्य सुरक्षा के अंदर आने वाले लोगो को राशन में गेहूं चावल और अन्य आवश्यक चीजें दी जाती हैं इसको भी हम नवाचार द्वारा इफेक्टिव बना सकते हैं आज की इस परिस्थिति में यह भी देखा गया है कि डीएसओ यानी कि डिस्टिक सप्लाई ऑफीस जो कि गरीब तबके बीपीएल या राशन कार्ड धारक धारकों को खाने पीने की सप्लाई का काम देखता है के पास जो टेक्नोलॉजी है उस टेक्नोलॉजी को राशन डीलर कई तरह से बाईपास कर जाते हैं या यूं कहिए कि सरकार डाल डाल तो कुछ बेईमान डीलर पात पात, यहां यह देखना जरूरी है कि कुछ राशन डीलर इस मामले में अपने लालच के चलते गरीबों में उक्त राशन को नहीं बांटते हैं और उनके हिस्से के राशन को खुर्द बुर्द कर दे देते हैं इसके लिए भी नवाचार करके ऐसी टेक्निक का अनुसरण करना चाहिए या निर्माण करना चाहिए जिसको बायपास करना या जिसका तोड़ निकालना राशन डीलर के पास ना हो इसके लिए मोबाइल राशन शॉप का निर्माण किया जा सकता है जिसे GPS इनेबल्ड बना कर, लोकेशन द्वारा उसकी जानकारी ली जा सके साथ ही उस मोबाइल राशन शॉप के डेटा बेस में जितने भी बीपीएल और राशन वाले हैं उनको डायरेक्ट जोड़ा जा सके जिनको उनके डेटा बेस से आधार कार्ड, राशन कार्ड, मोबाइल नम्बर, जनधन खाता, बायोमैट्रिक्स और उनके चेहरे के पहचान के आधार पर उन्हें जितना राशन मिलना है उतना उस मशीन से ऑटोमेटिक तुल कर उन्हें मिल जाए और इस पूरे क्रम में यह प्रकिया पूरी टचलेस हो। टच लेस होने से कोई भी आदमी जिसे राशन चाहिए होगा वह उस मशीन के सामने आकर खड़ा होगा वह मशीन उस इंसान को पहचान करेगी और उसकी उसकी पहचान को अलग-अलग डेटाबेस से टैली करेगी उसके बाद जो कुछ भी उसको देना है जो कि पहले से उसके खाते में दर्ज है को उसे ऑटोमेटिक तरीके तोल कर दे देगी। हालांकि पहचान का काम पीओएस मशीन से भी होता है जिसमें ओटीपी जनरेट होता है लेकिन इसमें व्यवहारिक रूप में कई तरह की खामियां सामने आई है। इस नई तरह की टेक्नोलॉजी के प्रयोग के बाद इस तरह की खामियों को काफी हद तक दूर किया जा सकता है। और वास्तविक उपभोक्ता को उसके लिए निश्चित मात्रा में सामग्री दी जा सकती है।
शहरों में रेस्टोरेंट्स और खाने की रेहड़ी वालों के लिए विशेष प्रकार की ऐप या वेबसाइट का डेवलपमेंट किया जाए जिससे कि उनकी मैन्यू और पेमेंट को डिजिटल किया जा सके जिससे इंसान के हाथ रखने की संभावनाओं को जितना हो, कम किया जा सके वह आसानी से संभव हो। मैन्यू, आर्डर और पेमेंट और इनवॉइसआदि काम भी अगर टचलेस हो जाते हैं तो इससे काफी मदद मिलेगी। अभी कुछ फूड डिलीवरी वालों ने भी इस पर कार्य शुरू किया है जिससे कि वह अपने संस्थान की उत्पादों की जानकारी, ऑर्डर और इनवॉइस को ऐप पर लेकर आए हैं जिससे कि ग्राहकों को कम से कम चीजों को छू ना पड़े।
इसके साथ ही सब अर्बन एरिया और ग्रामीण किराना की दुकानों को भी ऐप बेस्ट बनाया जाए जिससे कि वह अपने ग्राहकों के आर्डर, ग्राहक को बिना दुकान पर आए ले सके उनके उत्पादों की सारी जानकारियां मोबाइल की ऐप में हो, जैसा कि बड़े ग्रॉसरी स्टोर कर रहे हैं। ठीक ऐसे ही ऐप कम से कम दामों में छोटे किराना वालो को उपलब्ध कराए जाएं जिससे ज्यादा से ज्यादा किराना स्टोर डिजिटल हो सके। इससे टचलेस व्यापार किया जा सकेगा साथ ही डिलीवर करने वाले युवकों को भी रोजगार मिलेगा और जनता को सोशल डिस्टेंसिंग को अनुसरण करते हुए अपनी जरूरत का सामान घर बैठे मिल जाएगा।
भारत के ग्रामीणों और शहरी क्षेत्रों में आज भी लोग अपना गेहूं आसपास की चक्की पर पिसवाने आते हैं यह चक्कियां अभी भी पुरानी टेक्नोलॉजी पर ही चल रही है इस टेक्नोलॉजी को चेंज कर नई पावर सेविंग वाली डिजिटल चक्कियों को लाना चाहिए इससे ना केवल सोशल डिस्टेंसिंग होगी बल्कि उत्पाद पर आदमियों के हाथ लगने का जोखिम भी खत्म हो जाएगा
यह चक्कियां भारत में हमारे चोयल ग्रुप द्वारा डिवेलप की जा चुकी है और विदेशों में और यूरोप में भी एक्सपोर्ट हो चुकी हैं भारत में भी यह डिजिटल चक्कियां काम कर रही हैं इन चक्कियों की खास बात यह है कि यह मोबाइल ऐप से संचालित होती हैं जिसमें कस्टमर को ना तो गेहूं को हाथ लगाना है नाही आटे को। ग्राहक एप के द्वारा अपने गेहूं को पसंद कर उसकी क्वांटिटी का चयन कर ऑर्डर देकर डिजिटल पेमेंट करके अपना आटा अपनी आंखों के सामने पिसा सकते हैं हमने ना केवल इस तरह की बड़े आटा प्लांट बनाए हैं बल्कि अब हम छोटी चक्की भी डिजिटल और ऐप के साथ भी बनाकर दे रहे हैं
यहां यह भी उल्लेखनीय है कि इन चक्कियों को चलाने की तकनीक एंड्राइड मोबाइल या टैबलेट में डाल कर दी जाती है कोई भी आटा चक्की या आटा स्टोर वाला अपने नाम से इस ऐप को चला सकता है। क्रमशः
